शासन व्यवस्था
उम्मीदवार के प्रचार को प्रकाशित करना ‘पेड न्यूज़’ है: निर्वाचन आयोग
- 24 Sep 2018
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चर्चा में क्यों
हाल ही में निर्वाचन आयोग ने चुनावों के दौरान ‘पेड न्यूज़’ के प्रयोग के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी राय ज़ाहिर की है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि चुनाव में उम्मीदवार की उपलब्धियों की सराहना करते हुए प्रचार को बार-बार प्रकाशित करना ‘पेड न्यूज’ की श्रेणी में आता है। इस तरह के प्रचारों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के रूप में अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि चुनाव में उम्मीदवार की उपलब्धियों की सराहना करते हुए प्रचार को बार-बार प्रकाशित करना ‘पेड न्यूज’ है।
- राजनेता यह नहीं कह सकते है कि ‘प्रायोजित प्रचार’ को दूर करने के लिये अभिव्यक्ति की आज़ादी उनके मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है।
- चुनाव आयोग ने अदालत से यह घोषणा करने के लिये कहा है कि व्यापक स्तर पर प्रसारित होने वाले दैनिक समाचार पत्रों द्वारा उम्मीदवारों के बयानों को खबर में सम्मिलित करना, उनके नाम पर दर्ज़ रिकॉर्ड तथा उपलब्धियों का न केवल बखान करना है बल्कि यह वोट के लिये उम्मीदवार द्वारा मतदाताओं के समक्ष सीधा अनुरोध भी है। क्या यह “पेड न्यूज” के समान नहीं है?
- अनुचित लाभ- यदि चुनाव अवधि के दौरान अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में इस तरह के प्रायोजित प्रचार की अनुमति दी जाती है, तो मज़बूत नेटवर्क और अपरिभाषित संबंध वाले उम्मीदवार समाज में अपने प्रभाव क्षेत्र का फायदा उठाएंगे और इस तरह की मूक सेवाओं का फायदा उठाते हुए अनुचित लाभ उठाएंगे।
हालिया प्रकरण
- आयोग शीर्ष अदालत में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक निर्णय के खिलाफ पहुँचा था, जिसमें मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा को ‘पेड न्यूज’ के आरोपों में तीन साल के लिये अयोग्य ठहराने के आयोग के फैसले को उच्च न्यायालय ने 18 मई को खारिज कर दिया था।
- पेड न्यूज पर आयोग की राष्ट्रीय स्तर की समिति ने पाया कि व्यापक रूप से प्रसारित होने वाले पाँच समाचार पत्रों ने 42 ऐसे समाचार प्रकाशित किये थे जो ‘पक्षपातपूर्ण और एक तरफा थे तथा जिनका उद्देश्य श्री मिश्रा को आगे बढ़ाना था।
- कुछ रिपोर्ट उनके पक्ष में विज्ञापन के रूप में थीं। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि इन्हें ‘पेड न्यूज’ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- चुनाव आयोग ने श्री मिश्रा को चुनाव खर्च के रूप में समाचारों पर खर्च की गई ऐसी धनराशि को खातों में दर्ज न करने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया था। एक डिवीज़न बेंच ने निष्कर्ष निकाला कि बीजेपी नेता केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे।
- आयोग ने कहा कि “इस तरह के समाचार कवरेज की सामग्री की जाँच करने की आयोग की शक्तियों को समाप्त नहीं करना चाहिये।”